गौरवपूर्ण अतीत का पत्तन
तूतीकोरिन, समुद्री व्यापार में एक प्रसिद्ध पोतांतरण केन्द्र था, जो पूर्व में चीन, पश्चिम में ग्रीस और रोम को जोडता था। तमिलनाडु की प्रसिद्ध संपदा एवं समुद्री पत्तन के रूप में, तूतीकोरिन के उद्भव ने व्यापारियों, यात्रियों, साहसी लोगों और अंततः उपनिवेशवादियों को आकर्षित किया।
तूतीकोरिन के पुराने छोटे पत्तन से, 15वीं शताब्दी में चेन्नै, कोलंबो और अन्य समुद्री केन्द्रों के लिए छोटे जहाज़ चलते थे। 1532 में पुर्तगाली एवं 1649 में डच, तूतीकोरिन आए। अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी ने जून 1825 में तूतीकोरिन का प्रशासन अपने हाथ में ले लिया। डच ओबिलिस्क की जगह 1842 में लाइट हाउस निर्माण ने तूतीकोरिन पत्तन विकास के इतिहास की शुरूआत की। वर्ष 1866 में 30 मीटर लम्बा पहला आदिम लकडी का घाट रुपए 1200 की लागत में बनाया गया था ; वर्ष 1895 में एक उचित घाट का निर्माण किया गया और चार साल बाद दक्षिणी रेलवे की मुख्य लाइन को घाट तक विस्तारित किया गया।
तूतीकोरिन में गहरे समुद्र के पत्तन के निर्माण का प्रस्ताव पहली बार वर्ष 1914 में सोचा गया था और प्रारंभिक प्रस्ताव श्री ब्रिस्टो द्वारा तैयार किया गया था। वुल्फ बार्स योजना, ब्रिस्टो योजना, पामर योजना और चटर्जी योजना सभी को क्रमशः 1930, 1949, 1950 एवं 1954 में धन की कमी के कारण स्थगित कर दिया गया था।
1958 में, तूतीकोरिन के व्यापारिक हितों द्वारा भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री स्वर्गीय जवाहरलाल नेहरू से मिलने के लिए किए गए प्रयासों ने तूतीकोरिन पत्तन की अवधारणा का संकेत दिया। भारत सरकार की मध्यवर्ती पत्तन विकास समिति ने वर्ष 1960 के दौरान तूतीकोरिन में एक महा पत्तन की स्थापना की सिफारिश की, जिसमें निकटवर्ती बर्थ और आधुनिक सम्हलाई सुविधाएँ हों। समिति की सिफारिश को भारत सरकार ने स्वीकार कर लिया और तीसरी पंचवर्षीय योजना में 4 करोड रुपए का आबंटन किया गया। भारत सरकार ने जुलाई 1969 के दौरान 4 निकटवर्ती बर्थों के निर्माण के लिए 21.76 करोड रुपए के व्यय की मंजूरी दी। अवधारणा, योजना, रूप-रेखा का विकास, समुद्री संरचनाओं के डिजाईन और निष्पादन पूरी तरह से भारतीय इंजीनियरों द्वारा विदेश से किसी भी परामर्श के बिना किया गया था।
11 जुलाई 1974 को उत्तरी ब्रेकवाॅटर पर अस्थायी तेल मूरिंग बर्थ के चालू होने के साथ, तूतीकोरिन पत्तन को भारत का 10वां महा पत्तन घोषित किया गया। पहले दो निकटवर्ती बर्थ को उद्धटान 2 दिसंबर 1976 को तत्कालीन केन्द्रीय नौवहन और परिवहन राज्य मंत्री श्री एच एम त्रिवेदी ने किया था।
तूतीकोरिन का लघु पत्तन जो राज्य सरकार के अधीन था और तूतीकोरिन नया पत्तन, जो भारत सरकार के अधीन था, 1 अप्रैल 1979 से महा पत्तन न्यास अधिनियम 1963 के तहत विलय कर दिया गया। 1907 के दौरान तूतीकोरिन से कोलंबो तक पहला स्वदेशी जहाज़ चलाने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी वी ओ चिदम्बरनार को श्रद्धांजलि देने के प्रतीक के रूप में, तूतीकोरिन पत्तन न्यास का नाम बदलकर 19.02.2011 को वी ओ चिरम्बरनार पत्तन कर दिया गया।
महा पत्तन न्यास अधिनियम 1963 के निरसन के परिणामस्वरूप, 03.11.2021 से प्रभावी वी ओ चिदम्बरनार पत्तन न्यास का नाम बदलकर वी ओ चिदम्बरनार पत्तन प्राधिकरण कर दिया गया।